Aravalli Parvatmala

Aravalli Parvatmala: भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर और वर्तमान संकट

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Aravalli Parvatmala in hindi: भारत की प्राचीनतम ढाल, विरासत और अस्तित्व का संघर्ष
(The Aravalli Parvatmala: India’s Ancient Shield, Heritage, and Battle for Survival)

Aravalli Parvatmala केवल एक भौगोलिक संरचना नहीं है; यह भारतीय उपमहाद्वीप की रीढ़ है। जब हिमालय का जन्म भी नहीं हुआ था और टेथिस सागर लहराता था, तब अरावली पर्वतमाला अपनी पूरी शान के साथ खड़ी थी। यह विश्व की सबसे प्राचीन वलित पर्वतमालाओं (Oldest Fold Mountains) Aravalli Parvatmala में से एक है, जो करोड़ों वर्षों से भारत के मौसम, संस्कृति और सुरक्षा को निर्धारित करती आ रही है।

Aravalli Parvatmala, उत्पत्ति और भू-वैज्ञानिक इतिहास (Origin & Geological History)
अरावली का इतिहास पृथ्वी के इतिहास के साथ जुड़ा है।

Aravalli Parvatmala in Hindi: भारत की No.1 Oldest Mountain Range का इतिहास, महत्व और अस्तित्व का संकट

Aravalli Parvatmala का जन्म: इसकी उत्पत्ति प्री-कैम्ब्रियन काल (Pre-Cambrian Era) में, लगभग 600 से 700 मिलियन वर्ष पूर्व हुई थी।

Aravalli Parvatmala का प्राचीन स्वरूप: भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि अपने युवावस्था में अरावली, आज के हिमालय से भी ऊँची हुआ करती थी। इसकी चोटियाँ कभी बर्फ से ढकी रहती थीं।

Aravalli Parvatmala का वर्तमान स्वरूप: लाखों वर्षों की आंधी, बारिश, तापमान में बदलाव और घर्षण के कारण इसका अपक्षय (Erosion) हुआ। आज जो हम देखते हैं, वह उस विशाल पर्वत का बचा-कुचा हिस्सा है, जिसे ‘अवशिष्ट पर्वत’ (Residual Mountain) कहा जाता है।

  1. भौगोलिक विस्तार और संरचना (Geographical Expansion)
    अरावली भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में एक तलवार की भांति तिरछी लेटी हुई है।

कुल लंबाई: लगभग 692 किलोमीटर।

Aravalli Parvatmala का रास्ता: यह गुजरात के पालनपुर (खेड़ब्रह्मा) से शुरू होती है, राजस्थान को दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर काटते हुए, हरियाणा से गुजरती है और दिल्ली में समाप्त होती है।

राज्यवार विस्तार:

गुजरात: शुरुआत (निचला हिस्सा)।

राजस्थान: 80% विस्तार (उदयपुर, सिरोही, राजसमंद, अजमेर, जयपुर, अलवर)।

हरियाणा: गुरुग्राम, फरीदाबाद, मेवात।

दिल्ली: रायसीना हिल्स (जहाँ राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और JNU स्थित है)।

संरचना: यह एक निरंतर श्रृंखला नहीं है, बल्कि बीच-बीच में टूटी हुई है (Gaps), जिससे हवा और रेत को गुजरने का मौका मिलता है।

  1. Aravalli Parvatmala की चोटियाँ और प्रमुख दर्रे (Peaks & Passes)
    गुरु शिखर (1,722 मीटर): अरावली की सर्वोच्च चोटी, जो माउंट आबू (सिरोही) में स्थित है। इसे कर्नल जेम्स टॉड ने ‘सं-तों का शिखर’ कहा था।

अन्य चोटियाँ: शेर (1,597 मी), दिलवाड़ा (1,442 मी), जरगा (1,431 मी), अचलगढ़ (1,380 मी)।

प्रमुख दर्रे (Passes): देसुरी की नाल, हाथी गुडा की नाल – ये दर्रे ऐतिहासिक रूप से मेवाड़ को मारवाड़ से जोड़ते थे।

  1. Aravalli Parvatmala की जल-विभाजक और नदियाँ (Water Divide & River System)
    अरावली उत्तर भारत के लिए एक ‘महान जल-विभाजक’ (Great Water Divide) का कार्य करती है। यह बारिश के पानी को दो अलग-अलग दिशाओं में बांटती है:

पश्चिम की ओर (अरब सागर में गिरने वाली): लूनी नदी, माही नदी, साबरमती नदी।

पूर्व की ओर (बंगाल की खाड़ी में जाने वाली): बनास नदी (जो चम्बल में मिलती है, फिर यमुना और अंततः गंगा में)।

महत्व: यह पर्वतमाला भूजल (Groundwater) को रिचार्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अरावली की चट्टानों में दरारें हैं जो बारिश के पानी को जमीन के नीचे सोख लेती हैं।

  1. Aravalli Parvatmala की जलवायु और मानसून में भूमिका (Role in Climate)
    अरावली की स्थिति (Orientation) भारत के मानसून के लिए एक विचित्र पहेली है:

अरब सागर शाखा: मानसून की यह शाखा अरावली के समानांतर (Parallel) निकल जाती है। चूंकि पर्वत हवा के रास्ते में रुकावट नहीं बनते, इसलिए पश्चिमी राजस्थान (थार) सूखा रह जाता है।

बंगाल की खाड़ी शाखा: पूर्वी राजस्थान में यह पर्वत हवाओं को रोकते हैं, जिससे जयपुर, अलवर और अजमेर जैसे क्षेत्रों में बारिश होती है।

तापमान नियंत्रण: अरावली गर्मियों में थार रेगिस्तान से आने वाली गर्म हवाओं (लू) की गति को कम करती है।

  1. Aravalli Parvatmala की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व (Historical Significance)
    अरावली केवल भूगोल नहीं, बल्कि वीरों की रक्षक भी रही है:

Aravalli Parvatmala की सुरक्षा प्राचीर: मेवाड़ के इतिहास में अरावली का बड़ा योगदान है। हल्दीघाटी का युद्ध इसी की गोद में लड़ा गया। महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ अपनी छापामार (Guerrilla) लड़ाई के लिए इन्हीं दुर्गम पहाड़ियों का इस्तेमाल किया था।

किले (Forts): भारत के सबसे मजबूत किले – कुम्भलगढ़ (जिसकी दीवार चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी है), चित्तौड़गढ़, रणथंभौर, आमेर और नाहरगढ़ – अरावली की पहाड़ियों पर ही बने हैं।

  1. प्राकृतिक संसाधन और जैव-विविधता (Flora, Fauna & Minerals)
    खनिज संपदा:
    अरावली खनिजों का भंडार है। यहाँ सीसा, जस्ता, चांदी, तांबा और रॉक फॉस्फेट भारी मात्रा में मिलता है। मकराना का संगमरमर और जावर की खदानें (दुनिया की सबसे पुरानी जस्ता खदानें) यहीं हैं।

वन्यजीव: यह तेंदुओं (Leopards), लकड़बग्घों, सियार, नीलगाय और कई पक्षियों का घर है। ‘सरिस्का टाइगर रिजर्व’ और ‘माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी’ इसी क्षेत्र में हैं।

वनस्पति: यहाँ मुख्य रूप से शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forests) और धोक (Dhok) के पेड़ पाए जाते हैं।

Aravalli Parvatmala in Hindi: भारत की No.1 Oldest Mountain Range का इतिहास, महत्व और अस्तित्व का संकट
  1. सरकार के फैसले, नीतियां और विश्लेषण: सही या गलत?
    (Critical Analysis of Government Decisions)

अरावली के वर्तमान हालात को लेकर सरकार (केंद्र और राज्य) की भूमिका हमेशा सवालों के घेरे में रही है। यहाँ एक विस्तृत विश्लेषण है:

(A) विनाशकारी फैसले (What is Wrong?)
वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 (Forest Conservation Amendment Act):

क्या है: इस नए कानून के तहत उन जंगलों से कानूनी सुरक्षा हटाई जा सकती है जो सरकारी रिकॉर्ड में ‘जंगल’ दर्ज नहीं हैं, भले ही वे वास्तव में जंगल हों (Deemed Forest)।

विश्लेषण: यह फैसला अरावली के लिए घातक (Wrong) है। हरियाणा में अरावली का बड़ा हिस्सा राजस्व रिकॉर्ड में ‘जंगल’ नहीं है, लेकिन वहां घने पेड़ हैं। अब बिल्डर वहां आसानी से निर्माण कर सकेंगे।

PLPA (पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम) में ढील:

हरियाणा सरकार ने बार-बार इस कानून में बदलाव कर अरावली की जमीन को रियल एस्टेट के लिए खोलने की कोशिश की।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि “पहाड़ को हनुमान जी की तरह उठा कर नहीं ले जाया जा सकता, उसे वहीँ नष्ट किया जा रहा है।” सरकार की यह मंशा पूरी तरह गलत थी।

अवैध खनन को रोकने में विफलता:

राजस्थान और हरियाणा के कई इलाकों में पहाड़ों की चोटियाँ गायब हो गई हैं। सैटेलाइट इमेज में 31 पहाड़ गायब मिले हैं। यह प्रशासनिक विफलता है।

(B) सकारात्मक फैसले (What is Right?)
अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट (The Aravalli Green Wall Project):

योजना: पोरबंदर से पानीपत तक अरावली के चारों ओर 5 किमी चौड़ी हरी पट्टी (Green Belt) बनाना।

विश्लेषण: यह एक बहुत ही सही और दूरदर्शी फैसला है। यह रेगिस्तान को दिल्ली और पूर्वी भारत की ओर बढ़ने से रोकेगा और कार्बन सिंक का काम करेगा।

Aravalli Parvatmala in Hindi: भारत की No.1 Oldest Mountain Range का इतिहास, महत्व और अस्तित्व का संकट

माइनिंग पर सुप्रीम कोर्ट की रोक:

Aravalli Parvatmala: हालांकि यह न्यायपालिका का फैसला है, लेकिन इसे लागू करना सरकार का काम है। हाल ही में फरीदाबाद और गुरुग्राम के कुछ हिस्सों में क्रशर जोन बंद किए गए हैं।

इको-सेंसिटिव जोन (ESZ):

सरकार द्वारा सरिस्का और अन्य अभ्यारण्यों के आसपास के इलाकों को ‘इको-सेंसिटिव’ घोषित करना सही कदम है, जिससे वहां निर्माण कार्य सीमित होंगे।

  1. अंतिम निष्कर्ष और भविष्य (Conclusion & Future)
    अरावली पर्वतमाला भारत की पारिस्थितिकी (Ecology) के लिए ‘फेफड़े’ (Lungs) और ‘वाटर टावर’ दोनों है।

सच्चाई: सरकार ‘विकास’ (सड़कें, इमारतें, खनन) और ‘पर्यावरण’ के बीच झूल रही है। लेकिन, पलड़ा अक्सर अल्पकालिक मुनाफे (Short term profit) की ओर झुकता है, जो गलत है।

जरूरत: यदि अरावली खत्म हुई, तो उत्तर भारत में धूल भरी आंधियां (Dust Storms) आम हो जाएंगी, भूजल सूख जाएगा और दिल्ली रहने लायक नहीं बचेगी।

फैसला: सरकार का ‘ग्रीन वॉल’ प्रोजेक्ट सही है, लेकिन अगर वन कानूनों को कमजोर करके पहाड़ों को कंक्रीट में बदला गया, तो यह इतिहास की सबसे बड़ी भूल होगी। अरावली को बचाने के लिए ‘पूर्ण संरक्षण’ (Total Conservation) ही एकमात्र सही रास्ता है।

Aravalli Parvatmala की पीड़ा, उसके अस्तित्व के संघर्ष और इंसानी लालच पर आधारित 10 दिल छू लेने वाली दुख भरी शायरियां यहाँ दी गई हैं। आप इनका इस्तेमाल अपने आर्टिकल के बीच-बीच में या सोशल मीडिया पोस्ट के कैप्शन में कर सकते हैं।

Aravalli Parvatmala की पीड़ा: 10 दुख भरी शायरियां

  • रक्षक का दर्द सदियों से सीना तान खड़ा था जो ढाल बनकर, आज अपने ही वजूद को तरसता है वो पहाड़ बनकर। काट दिया तुमने मेरी जड़ों को चंद सिक्कों की खातिर, अब कौन बचाएगा तुम्हें रेगिस्तान की चाल बनकर?

  • खामोश चीखें खामोश पत्थरों की भी जुबां होती है साहब, कभी कान लगाकर अरावली की सिसकियाँ तो सुनो। तुमने तो बस इमारतें बनाने के लिए पत्थर बटोरे, कभी मेरे सीने के गहरे जख्मों को तो गिनो।

  • विकास या विनाश? विकास की अंधी दौड़ में तुम इतना गिर जाओगे, पहाड़ काटकर जब समतल करोगे, तो पानी कहाँ से लाओगे? आज मुझे नोचकर तुमने ऊंचे महल तो बना लिए, कल जब सांसें घटेंगी, तो हवा किस से मांगोगे?

  • बूढ़ा पर्वत हिमालय का भी बुज़ुर्ग हूँ, पर मेरा सम्मान कहाँ, टुकड़ा-टुकड़ा बिक रहा हूँ, अब मेरी वो शान कहाँ। जिसने पाल-पोस कर तुम्हें नदियों का नीर दिया, आज उसी के हिस्से में बचा है बस रेगिस्तान यहाँ।

  • खून के आँसू मेरे जिस्म को खोदकर जो तुम मुनाफा कमाते हो, सच बताओ, क्या रात को सुकून से सो पाते हो? मेरी हर चट्टान में सदियों का इतिहास दबा है, तुम इतिहास मिटाकर कैसा भविष्य बनाते हो?

  • रेगिस्तान की आहट रोक रखा था मैंने उस तपते समंदर को परहेज़ से, तुमने मुझे हटाकर अपने ही घर में आग बुला ली। अब उड़कर आएगी रेत तुम्हारे आंगन तक बेखौफ, क्योंकि तुमने अपने ही पहरेदार की बलि चढ़ा दी।

  • आने वाली नस्लें आने वाली नस्लें बस किताबों में पढ़ेंगी किस्से मेरे, कि एक पर्वत था जो मर गया तुम्हारी लालच के घेरे। वो पूछेंगे कि ‘हवा और पानी’ क्यों नहीं मिलता अब, तब शर्म से झुक जाएंगे शायद सब चेहरे तेरे।

  • बादलों से बिछड़ा यार अब बादल भी मेरे ऊपर से बिना बरसे गुज़र जाते हैं, शायद वो भी मेरी कटी हुई चोटियों को देख घबराते हैं। कभी मैं उनको रोककर प्यास बुझाता था धरती की, आज मेरे ही दामन में सूखे के मंज़र नज़र आते हैं।

  • कुदरत का श्राप मत छेड़ो कुदरत को, यह हिसाब पूरा लेगी, आज तुम पहाड़ तोड़ोगे, कल यह तुम्हें तोड़ देगी। मैं तो पत्थर हूँ, शायद फिर भी खड़ा रहूँ, पर बिना मेरे यह धरती तुम्हारे लिए कब तक जिएगी?

  • आखिरी पुकार मत उखाड़ो मेरी जड़ों को, मैं तुम्हारा ही सहारा हूँ, मैं अरावली हूँ, कोई पत्थर नहीं, मैं कुदरत का नज़ारा हूँ। बचा सको तो बचा लो मुझे, अभी भी वक्त बाकी है, वरना समझ लो, मैं तुम्हारी ही बर्बादी का इशारा हूँ।

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